अमीर खुसरो के दोहे | amir khusro ke dohe

अमीर खुसरो के दोहे | Amir Khusro ke Dohe

 अमीर खुसरो के दोहे : अमीर खुसरो फारसी कलाम के बहुत बड़े शायर है उनके ज्यादातर कविताएँ फारसी भाषा में ही है परंतु उन्होंने हिंदी में भी कविता लिखी । यहां पर अमीर खुसरो के दोहे और प्रसिद्ध रचनाएं आपके सामने प्रस्तुत की गई है । अमीर खुसरो हिंदुस्तान के दिल्ली शहर में रहते थे । अमीर खुसरो को कंपनी “भारत का तोता” और “भारत की आवाज” और कहा जाता है। अमीर खुसरो को उर्दू साहित्य का पिता कहा जाता है ।


Ameer Khusro ke Dohe

अमीर खुसरो के दोहे| Ameer Khusro ke Dohe

खुसरो दरिया प्रेम का जो उल्टी बाकी धार,
जो उबरा सो डूब गया जो डूबा सो पार |
खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलू पी के संग,
जो जीत गई तो पिया मोरे हारी पी के संग ||
रेन बिना जग दुखी,

और दुखी चंद्र बिन रैन |

तुम बिन साजन मैं दुखी,

और दुखी दरस बिन नैन ||


गोरी सोवे सेज पर,

मुख पर डारे केस |

चल खुसरो घर आपने,

सांझ भयी चहु देस ||


अपनी छवि बनाई के,

मैं तो पी के पास गई |

जब छवि देखी पीहू की,

सो अपनी भूल गई ||


खुसरो निजाम के बल बल जाइए,

मोहे सुहागन कीनी रे मोसे नैना मिलाइके |

छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके |


श्याम सेट गोरी लिए,

जनमत भाई अनीत |

एक पल में फिर जात है,

जोगी काके कीमत ||


पंखा होकर मैं डुली,

साथी तेरा चाव |

मुझ जलती का जन्म गयो,

तेरे लेखन भाव ||


सौ नारे सै सुख सेवैं,

कल को गुल लार |

मैं दुखियारी जनम की,

दुखी गई बहार ||


उज्जवल बरन अधीन तन,

एक दिन्त दो ध्यान |

देखत में तो साधू है 

पर निकट पाप की खान ||


खुसरो मोला के रूठते,

पीर के सरने जाए |

कहे खुसरो पीर के रूठते,

मौला नहीं होत सहाय ||


यहां पर अमीर खुसरो के दोहे और उनकी प्रसिद्ध रचनाएं दी गई है । आशा है यह आपको पसंद आए होंगे ।

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